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सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'
सूर्यकान्त त्रिपाठी | |
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सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' का १९७६ में जारी हुए एक डाकटिकट पर चित्र | |
जन्म | २१ फरवरी, १८९९ मेदिनीपुर, पश्चिम बंगाल, भारत |
मौत | १५ अक्टूबर, १९६१ इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत |
दूसरे नाम | 'निराला' |
पेशा | कवि, लेखक |
भाषा | हिन्दी |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
काल | आधुनिक काल |
विधा | गद्य तथा पद्य |
विषय | गीत, कविता, कहानी, उपन्यास, निबंध |
आंदोलन | छायावाद व प्रगतिवाद |
उल्लेखनीय कामs | राम की शक्तिपूजा, सरोज स्मृति |
हस्ताक्षर | चित्र:Signaturenirala.jpg |
Sumitsoni.jpg | |
Sumitsonisamthar |
सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' (२१ फरवरी, १८९९[1] - १५ अक्टूबर, १९६१) हिन्दी कविता के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों[क] में से एक माने जाते हैं।[2] वे जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत और महादेवी वर्मा के साथ हिन्दी साहित्य में छायावाद के प्रमुख स्तंभ माने जाते हैं। उन्होंने कई कहानियाँ, उपन्यास और निबंध भी लिखे हैं किन्तु उनकी ख्याति विशेषरुप से कविता के कारण ही है।
जीवन परिचय
सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' का जन्म बंगाल की महिषादल रियासत (जिला मेदिनीपुर) में माघ शुक्ल ११, संवत् १९५५, तदनुसार २१ फ़रवरी, सन् १८९९ में हुआ था।[1] वसंत पंचमी पर उनका जन्मदिन मनाने की परंपरा १९३० में प्रारंभ हुई।[3] उनका जन्म मंगलवार को हुआ था। जन्म-कुण्डली बनाने वाले पंडित के कहने से उनका नाम सुर्जकुमार रखा गया। उनके पिता पंडित रामसहाय तिवारी उन्नाव (बैसवाड़ा) के रहने वाले थे और महिषादल में सिपाही की नौकरी करते थे। वे मूल रूप से उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के गढ़ाकोला नामक गाँव के निवासी थे।
निराला की शिक्षा हाई स्कूल तक हुई। बाद में हिन्दीसंस्कृत और बाङ्ला का स्वतंत्र अध्ययन किया। पिता की छोटी-सी नौकरी की असुविधाओं और मान-अपमान का परिचय निराला को आरम्भ में ही प्राप्त हुआ। उन्होंने दलित-शोषित किसान के साथ हमदर्दी का संस्कार अपने अबोध मन से ही अर्जित किया। तीन वर्ष की अवस्था में माता का और बीस वर्ष का होते-होते पिता का देहांत हो गया। अपने बच्चों के अलावा संयुक्त परिवार का भी बोझ निराला पर पड़ा। पहले महायुद्ध के बाद जो महामारी फैली उसमें न सिर्फ पत्नी मनोहरा देवी का, बल्कि चाचा, भाई और भाभी का भी देहांत हो गया। 1918 में स्पेनिश फ्लू इन्फ्लूएंजा के प्रकोप में निराला ने अपनी पत्नी और बेटी सहित अपने परिवार के आधे लोगों को खो दिया।[4][5] शेष कुनबे का बोझ उठाने में महिषादल की नौकरी अपर्याप्त थी। इसके बाद का उनका सारा जीवन आर्थिक-संघर्ष में बीता।
निराला के जीवन की सबसे विशेष बात यह है कि कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी उन्होंने सिद्धांत त्यागकर समझौते का रास्ता नहीं अपनाया, संघर्ष का साहस नहीं गंवाया। जीवन का उत्तरार्द्ध इलाहाबाद में बीता। वहीं दारागंज मुहल्ले में स्थित रायसाहब की विशाल कोठी के ठीक पीछे बने एक कमरे में १५ अक्टूबर १९६१ को उन्होंने अपनी इहलीला समाप्त की।
कार्यक्षेत्र
सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' की पहली नियुक्ति महिषादल राज्य में ही हुई। उन्होंने १९१८ से १९२२ तक यह नौकरी की। उसके बाद संपादन, स्वतंत्र लेखन और अनुवाद कार्य की ओर प्रवृत्त हुए। १९२२ से १९२३ के दौरान कोलकाता से प्रकाशित 'समन्वय' का संपादन किया, १९२३ के अगस्त से मतवाला के संपादक मंडल में कार्य किया। इसके बाद लखनऊ में गंगा पुस्तक माला कार्यालय में उनकी नियुक्ति हुई जहाँ वे संस्था की मासिक पत्रिका सुधा से १९३५ के मध्य तक संबद्ध रहे। १९३५ से १९४० तक का कुछ समय उन्होंने लखनऊ में भी बिताया। इसके बाद १९४२ से मृत्यु पर्यन्त इलाहाबाद में रह कर स्वतंत्र लेखन और अनुवाद कार्य किया। उनकी पहली कविता ‘जन्मभूमि’ प्रभा नामक मासिक पत्र में जून १९२० में, पहला कविता संग्रह १९२३ में अनामिका नाम से, तथा पहला निबंध ‘बंग भाषा का उच्चारण’ अक्टूबर १९२० में मासिक पत्रिका सरस्वती में प्रकाशित हुआ।
अपने समकालीन अन्य कवियों से अलग उन्होंने कविता में कल्पना का सहारा बहुत कम लिया है और यथार्थ को प्रमुखता से चित्रित किया है। वे हिन्दी में मुक्तछन्द के प्रवर्तक भी माने जाते हैं। १९३० में प्रकाशित अपने काव्य संग्रह परिमल की भूमिका में उन्होंने लिखा है-
“मनुष्यों की मुक्ति की तरह कविता की भी मुक्ति होती है।” मनुष्यों की मुक्ति कर्म के बंधन से छुटकारा पाना है और कविता की मुक्ति छन्दों के शासन से अलग हो जाना है। जिस तरह मुक्त मनुष्य कभी किसी तरह दूसरों के प्रतिकूल आचरण नहीं करता, उसके तमाम कार्य औरों को प्रसन्न करने के लिए होते हैं फिर भी स्वतंत्र। इसी तरह कविता का भी हाल है।[6]
लेखन कार्य
निराला ने १९२० ई॰ के आसपास से लेखन कार्य आरंभ किया।[7][8] उनकी पहली रचना 'जन्मभूमि' पर लिखा गया एक गीत था।[7] लंबे समय तक निराला की प्रथम रचना के रूप में प्रसिद्ध 'जूही की कली' शीर्षक कविता, जिसका रचनाकाल निराला ने स्वयं १९१६ ई॰ बतलाया था, वस्तुतः १९२१ ई॰ के आसपास लिखी गयी थी तथा १९२२ ई॰ में पहली बार प्रकाशित हुई थी।[9][10] कविता के अतिरिक्त कथासाहित्य तथा गद्य की अन्य विधाओं में भी निराला ने प्रभूत मात्रा में लिखा है।
प्रकाशित कृतियाँ
काव्यसंग्रह
- अनामिका (१९२३)
- परिमल (१९३०)
- गीतिका (१९३६)
- अनामिका (द्वितीय) (१९३९)[11] (इसी संग्रह में सरोज स्मृति और राम की शक्तिपूजा जैसी प्रसिद्ध कविताओं का संकलन है।
- तुलसीदास (१९३९)
- कुकुरमुत्ता (१९४२)
- अणिमा (१९४३)
- बेला (१९४६)
- नये पत्ते (१९४६)
- अर्चना(१९५०)
- आराधना (१९५३)
- गीत कुंज (१९५४)
- सांध्य काकली
- अपरा (संचयन)
उपन्यास
- अप्सरा (१९३१)
- अलका (१९३३)
- प्रभावती (१९३६)
- निरुपमा (१९३६)
- कुल्ली भाट (१९३८-३९)
- बिल्लेसुर बकरिहा (१९४२)
- चोटी की पकड़ (१९४६)
- काले कारनामे (१९५०) {अपूर्ण}
- चमेली (अपूर्ण)
- इन्दुलेखा
- तकनीकी
कहानी संग्रह
- लिली (१९३४)
- सखी (१९३५)
- सुकुल की बीवी (१९४१)
- चतुरी चमार (१९४५) ['सखी' संग्रह की कहानियों का ही इस नये नाम से पुनर्प्रकाशन।]
- देवी (१९४८) [यह संग्रह वस्तुतः पूर्व प्रकाशित संग्रहों से संचयन है। इसमें एकमात्र नयी कहानी 'जान की !' संकलित है।]
निबन्ध-आलोचना
- रवीन्द्र कविता कानन (१९२९)
- प्रबंध पद्म (१९३४)
- प्रबंध प्रतिमा (१९४०)
- चाबुक (१९४२)
- चयन (१९५७)
- संग्रह (१९६३)[12]
पुराण कथा
- महाभारत (१९३९)
- रामायण की अन्तर्कथाएँ (१९५६)
बाल साहित्य
- भक्त ध्रुव (१९२६)
- भक्त प्रहलाद (१९२६)
- भीष्म (१९२६)
- महाराणा प्रताप (१९२७)
- सीखभरी कहानियाँ (ईसप की नीतिकथाएँ) [१९६९][13]
अनुवाद
- रामचरितमानस (विनय-भाग)-१९४८ (खड़ीबोली हिन्दी में पद्यानुवाद)
- आनंद मठ (बाङ्ला से गद्यानुवाद)
- विष वृक्ष
- कृष्णकांत का वसीयतनामा
- कपालकुंडला
- दुर्गेश नन्दिनी
- राज सिंह
- राजरानी
- देवी चौधरानी
- युगलांगुलीय
- चन्द्रशेखर
- रजनी
- श्रीरामकृष्णवचनामृत (तीन खण्डों में)
- परिव्राजक
- भारत में विवेकानंद
- राजयोग (अंशानुवाद)[14]
रचना-समग्र
- निराला रचनावली (आठ खण्डों में) - प्रथम संस्करण-१९८३ (सं॰ नन्दकिशोर नवल; राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली से प्रकाशित।)
समालोचना
निराला की काव्य भाषा
इस प्रकार निराला की भाषा में हिंदी के सभी रूपों के दर्शन होते हैं। महाकवि निराला को जब जिस भाव को व्यक्त करने की आवश्यकता होती थी, सरस्वती का वही रूपप उसके समक्ष नाचता-गाता प्रस्तुत होता था। जहाँ एक ओर संस्कृत की तत्समता तथा सामाजिकता से उनकी भाषा दुरूह तथा झिल है वहाँ लोक प्रचलित मुहावरों से युक्त की है जिसमें उनका वास्तविक व्यक्तित्व झांकता है। निराला की भाषा एक आदर्श भाषा है। जिसने हिंदी के परिनिष्ठत रूप के विकास में पर्याप्त योग दिया है। डॉ० द्वारिका प्रसाद सक्सेना के शब्दों में कह सकते हैं कि- "कवि निराला आधुनिक हिंदी भाषा के डिक्टेटर हैं, क्योंकि अपने भावों एवं विचारों के अनुकूल अभिव्यक्ति में सव सफल दिखाई देती है। यह दूसरी बात है कि जहाँ भाषा कवि की गहन अनुभूति के साथ नहीं चल सकी, वहाँ न केवल कवि की अभिव्यक्ति ही विश्रंखल हो गई हैं अपितु भाषा में भी अस्पष्टता आ गई है। किंतु ऐसे स्कूल अधिक नहीं है।"
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
- ↑ अआनिराला की साहित्य साधना, प्रथम खण्ड (जीवन चरित), रामविलास शर्मा, राजकमल प्रकाशन प्रा॰लि॰, नयी दिल्ली, संस्करण-२००२, पृष्ठ-१७ एवं ४४३.
(पृष्ठ-१७ पर निराला की जन्मतिथि के संदर्भ में अंग्रेजी तारीख देने के क्रम में मुद्रण-त्रुटि से २१ फरवरी के बदले २९ फरवरी मुद्रित हो गया है जिसका स्पष्टीकरण संवत् एवं तिथि के अनुसार अंग्रेजी तारीख बनाने के अतिरिक्त इसी पुस्तक के पृष्ठ संख्या-४४३ पर उल्लिखित तथ्यों के अनुसार भी आसानी से हो जाता है। पृष्ठ संख्या-४४३ पर निराला के जन्म के संदर्भ में पर्याप्त विचार-विमर्श के पश्चात् उनकी उक्त जन्मतिथि निर्धारित की गयी है। अतः किन्ही व्यक्ति को पूर्वाग्रहवश किसी अन्य तिथि को निराला की जन्मतिथि मानकर स्वयं या अन्य लोगों को भ्रमित करने की दिशा में कदम नहीं बढ़ाना चाहिए।)
- ↑"स्पैनिश फ्लू यानी जब मौत के तांडव ने दिया हिन्दी के महान कवि को जन्म".
- ↑"निराला जयंती".Erin miranda biography
ऋषभ. मूल से 27 मई 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि १० दिसम्बर२००८.
- ↑"How literature has helped us make sense of pandemics".
- ↑"References to death and disease invoice Hindi literature".
- ↑हिन्दी साहित्य कोश, भाग-२, सं॰ धीरेन्द्र वर्मा एवं अन्य, ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी, पुनर्मुद्रित संस्करण-२०११, पृष्ठ-६५१.
- ↑ अआनिराला की साहित्य साधना, प्रथम खण्ड (जीवन चरित), रामविलास शर्मा, राजकमल प्रकाशन प्रा॰लि॰, नयी दिल्ली, संस्करण-2002, पृ०-39-40.
- ↑निराला रचनावली, खण्ड-1, सं॰-नन्दकिशोर नवल, राजकमल प्रकाशन प्रा०लि०, नयी दिल्ली, संस्करण-1998, पृ०-19.
- ↑ निराला की साहित्य साधना, प्रथम खण्ड (जीवन चरित), रामविलास शर्मा, राजकमल प्रकाशन प्रा॰लि॰, नयी दिल्ली, संस्करण-2002, पृ०-60-61 तथा पृ०-440-441.
- ↑निराला रचनावली, खण्ड-1, पूर्ववत्, पृ॰-42.
- ↑निराला रचनावली, खण्ड-1, पूर्ववत्, पृ॰-20.
- ↑निराला रचनावली, खण्ड-5, पूर्ववत्, पृ॰-14.
- ↑निराला रचनावली, खण्ड-7, पूर्ववत्, पृ॰-15.
- ↑निराला रचनावली, खण्ड-1, पूर्ववत्, पृष्ठ-16.